
📰 BIG BREAKING: लखनऊ पुलिस पर भारी असंतोष—चालान में मशगूल, गंभीर अपराधों में आलस का आरोप
लखनऊ, 24 अप्रैल 2025
राजधानी लखनऊ में पुलिस की कार्यप्रणाली पर उठ रहे सवाल नई तकनीक से भी तेज़ हैं। जहां गरीब ऑटो और बैटरी रिक्शा चालक रोज़ाना चालानों के बोझ तले दबे हैं, वहीं शहर में बढ़ते जघन्य अपराध—हत्या, अपहरण, और संगीन लूट—की जांच में पुलिस उदासीन दिख रही है।
1️⃣ चालान “तंत्र” बनाम “क्लाइमेक्स अपराध”
चालानों की बौछार:
रोज़ाना सैकड़ों रिक्शा चालकों पर चालान काटे जाते हैं, राशि ₹500–₹2,000 तक।
ऑटो यूनियन का दावा: “कई रिक्शा दिनभर खड़े रहने से बंद हैं।”
गंभीर अपराध ठंडे बस्ते में:
एक अज्ञात युवक का शव कई दिनों बाद बरामद, हत्या जांच लटकी।
अपहरण, बलात्कार जैसे केसों में पुलिस की सक्रियता गुम।
2️⃣ नागरिकों का आक्रोश और सोशल मीडिया रिवॉल्ट
#ChallanOverCrime ट्रेंड कर रहा है ट्विटर पर।
लोग शेयर कर रहे:
“जब जान बचानी हो, तब पुलिस कहां रहती है? चालान के लिए ही तैयार!”
वर्चुअल पिटाई: उग्र कमेंट्स और हेल्पलाइन नंबरों पर शिकायतों की बाढ़।
3️⃣ पुलिस का बचाव और बयानबाजी
DIG लखनऊ (सिटी):
“हर केस की जांच हो रही है, सबूत इकट्ठा करने में समय लगता है।”
SP ट्रैफ़िक:
“चालान नियम में शामिल है, पर अपराध नियंत्रण प्राथमिकता में है।”
4️⃣ विश्लेषक क्या कहते हैं?
क्राइम एक्सपर्ट:
“पुलिस का फोकस ‘क्विक रेवेन्यू’ से ‘क्राइम कंट्रोल’ की ओर होना चाहिए।”
साइबर एक्टिविस्ट:
“सोशल मीडिया ट्रोल ने वह आवाज़ उठाई जो कानूनी व्यवस्था चुप थी।”
5️⃣ क्या हो आगे?
ऑडिट: पुलिस की चालान व अपराध रिकॉर्ड का स्वतंत्र ऑडिट
सिटी क्राइम मीटिंग: नागरिक प्रतिनिधि, एडवोकेट और कमिश्नर की त्वरित बैठक
ट्रेनिंग और रिफॉर्म: पुलिसकर्मियों को संवेदनशीलता, फॉरेन्सिक स्किल्स पर अपडेट
🔔 निष्कर्ष:
लखनऊ पुलिस को चाहिए कि वह अपनी प्राथमिकताएं पुनर्जीवित करे—जहां एक ओर आय का स्रोत बन चुकी चालान प्रणाली हो, वहीं दूसरी ओर नागरिकों की जान की सुरक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए। अगर व्यवस्था ने सुधार नहीं किया, तो शहर की सुरक्षा को लेकर जनता का भरोसा पूरी तरह खो जाएगा।
📝 रिपोर्ट: एलिक सिंह
संपादक – वन्दे भारत लाइव टीवी न्यूज़
जिला प्रभारी – भारतीय पत्रकार अधिकार परिषद
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